ABHISHEK KAMAL

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Patna, Bihar, India
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Thursday, October 26, 2023

Noon Roti-1st Web Series in Maithili

Today I witnessed the grand premier of this most awaited web-series. It was really great to watch first few episodes. I deliberately left some episodes so that I can enjoy them on coming weekend with family and friends. 



"Noon Roti" is a thought-provoking cinematic exploration of the harsh realities of unemployment and discrimination within a particular state. Directed with empathy and precision, this web series delves deep into the lives of its characters, shining a harsh light on the challenges they face. 




The storyline is compelling, shedding light on the struggles and emotional turmoil that accompany unemployment and discrimination. The cast's performances are stellar, particularly the lead actors, who bring depth and authenticity to their roles, making it easy for the audience to connect with their characters.


This web series effectively portrays the discrimination faced by the youth of Mithilanchal not only in other states but within their own state also, highlighting the systemic issues that perpetuate inequality. It powerfully underscores the importance of addressing these deep-seated problems.


Cinematographically, "Noon Roti" is a visual treat even though it was made on low budget. The use of stark contrasts and lighting techniques adds to the overall impact of the film, while the soundtrack complements the emotional rollercoaster of the narrative. The dialogues and punches of the characters are hilarious and thought provoking.


This web series does not offer simple solutions but rather encourages viewers to reflect on the issues presented. While it can be emotionally heavy at times, but also make you smile. It’s  an essential watch for those seeking a deeper understanding of unemployment and discrimination within state. "Noon Roti" is a significant contribution to the cinema, driving home the need for societal change and empathy.


A must watch. Best wishes Team Noon Roti.


Link:-https://www.youtube.com/channel/UCZCpHpF-g9X_pDM_81iJHmA

Sunday, June 13, 2021

साइमन


 तस्वीर:- वृहद हिमालय, 02.07.2017


कुछ कहानियाँ ऐसी होती है जो किसी भी समय आपके सामने प्रकट हो जाती है चाहे आप उसे काफी समय पहले ही क्यों ना सुने हों। 

बचपन में एक ऐसी ही एक कहानी थी जिसे मुझे बार-बार सुनना अच्छा लगता था। मैं उस कहानी को अपने पापा से बार-बार सुनता था। पता नहीं कितने महीनों तक एक-दो दिन बीच कर उसी कहानी को सुनाने की जिद करता था। वह थी लियो टॉलस्टॉय के द्वारा लिखी कहानी, “What Men Live By”। उस कहानी में साइमन नामक एक गरीब व्यक्ति रहता था, जो जूते बनाता था। वह एक झोपड़ी में अपने पत्नी और बच्चों के साथ रहता था। जाड़े से बचने के लिए उसके पास एक ही कोट था और वो भी फटा हुआ जिसे वह दोनों पति-पत्नी बारी-बारी से पहनते थे। उनके पास खाने के लिए भी एक-दो दिन के ही राशन होते थे। एक दिन भारी बर्फबारी और ठंड के बीच साइमन पास के गाँव से लौट रहा था तो रास्ते में उसे एक ठंढ से बेहाल आदमी दिखाई दिया जो चर्च के कीनारे लेटा हुआ था, उसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था। साइमन ने उसे अपना कोट दिया, और उसे अपना जूता पहनाया फिर उसे लेकर अपने घर आ गया। उसके घर में भोजन नहीं के बराबर था, फिर भी उसने उस भोजन को आपस में बाँट कर खाया। फिर उस व्यक्ति को साइमन ने काम सिखाया और अपने यहाँ रखा। कहानी लंबी है लेकिन साइमन का यह त्याग और मदद करने की इच्छा लोगों को हरेक सदी में प्रभावित और प्रेरित करती रहेगी। कहानी यह बताती है कि लोग किसी अन्य कारण से जीवित नहीं रहते बल्कि इसलिए जीवित रहते हैं कि उनके बीच में प्रेम होता है। 

वर्ष 2020 एवं 2021 कोरोना को लेकर लोगों को हमेशा याद रहेगा। शायद इस महामारी की कहानी लोग आने वाली पीढ़ी को सुनाएं। हर तरफ सन्नाटा था, सभी जगह अंधकारमय एवं दुखद वातावरण था । लोग एक दूसरे से दूरी बनाए हुए थे। ऐसे में कुछ लोग ऐसे भी थे जो आगे आकर हर तरह से बीमारों एवं उनके परिजनों की मदद कर रहे थे। उस समय मदद की ये सुखद तस्वीरें और समाचार लोगों में हिम्मत का संचार करती थी। वह तस्वीरें लोगों में मानवता के प्रति विश्वास जगाती हुई दिखती थी। वह तस्वीरें उस भयावह माहौल में भी लोगों के मन से बीमारी की डर को दूर करने में सफल हुई।

वो तस्वीरें थी उनलोगों की जिन्होंने खुद अपना ऑक्सीजन सिलिन्डर अपने साथ वाले बीमार व्यक्ति को दिया और बारी-बारी से दोनों ने एक ही सिलिन्डर का उपयोग कर बीमारी से लड़े।  यह तस्वीर थी  उनलोगों की भी जिन्होंने संसाधनों के कमी के बावजूद, लोगों की यथासंभव मदद की। वो लोग भी प्रेरणास्रोत बने जो बिना किसी प्रचार और फोटो-ऑप के लोगों को भोजन, दवाएं और ऑक्सीजन पहुंचाते रहे। लोगों के निधन पर, लोगों ने अपने धर्म से अलग भी, अन्य धर्मों के लोगों का उनके धार्मिक रीति-रीवाजों से अंतिम संस्कार किया। एक-दूसरे की मदद में धर्म को आरे नहीं आने दिया। देश के हरेक क्षेत्र से ऐसी खबरें आती रही जिसमें लोगों ने सरकारी मदद का इंतजार किए बिना एक-दूसरे की जी-जान से मदद की।    

इस महामारी ने What Men Live By कहानी के संदेश को पुनः स्थापित कर दिया। जब हम अपने जीवन के दैनिक व्यवहार में इतने मगन हो जाते हैं, तो हमें बड़ी तस्वीर नहीं दिखाई देती है। हम अपने जरूरत की चीजों के पीछे भागने के क्रम में उस घोड़े के समान हो जाते हैं जिसे अपने आँखों के पास लगे चमड़े की पट्टी के कारण सिर्फ 30% का क्षेत्र ही दिखाई देता है। हमें अपने आस-पास और दूसरे लोगों की पीड़ा की परवाह नहीं रहती है।  हम उनकी उपेक्षा करते हैं,  जैसे कि वे हमारी समस्याएं नहीं हैं। हम यह महसूस नहीं करते हैं कि हमारी एक छोटी-सी मदद से किसी दूसरे व्यक्ति की जीवन की बड़ी समस्या हल हो सकती है।  हमें मनुष्य बनना चाहिए यद्यपि यह एक कठिन प्रक्रिया है। हमें जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए और वह भी बिना किसी रिटर्न की उम्मीद के। हमें यह महत्वपूर्ण सत्य याद रखना चाहिए कि,  मनुष्य सिर्फ और सिर्फ प्रेम से जीते हैं, जो उनमें मौजूद है। हमने आपसी मदद का जो जज्बा कोरोना काल में दिखाया है, उसे हरसंभव जीवित रखना चाहिए।

हमें अपने अंदर के साइमन को जीवित रखना चाहिए, जो किसी जरुरतमन्द को देख कर भागे नहीं बल्कि रुक कर उसकी मदद करे


Saturday, May 29, 2021

घोड़े वाला

 किसी का होना ही उसके होने का भाव उत्पन्न करे यह जरूरी नहीं, कभी-कभी उसका नहीं होना भी उसके होने का ज्यादा एहसास कराती है। कभी-कभी यादों के साथ चुपचाप जीना अच्छा लगता है फिर लगता है कि उन यादों को सबके सामने रखना ही चाहिए जिससे वो आपका पीछा छोड़ सके और आपका वो अनदेखी तस्वीरें दिखना बंद हो जाए।

बात उन दिनों की है जब मैं चौथी कक्षा में पढ़ता था। मैं पहाड़ के तलहटी में जंगलों के बीच बसे एक छोटे से कस्बे में रहता था। जंगल के बीच से एक सड़क जाती थी और सड़क के दोनों ओर लकड़ी के घर बने होते थे। मेरे घर के पास ही एक पहाड़ी नदी के किनारे एक और घर था......... हाँ, यही उस छोटे लड़के का घर था। उस घर में उसके साथ उसके मम्मी-पापा और बड़ा भाई रहते थे। उस छोटे लड़के कि उम्र मेरी ही उम्र के बराबर था। और हाँ उसके घर में एक और सदस्य था- एक प्यार सा घोड़ा। उसका घर मेरे स्कूल के रास्ते में पड़ता था।  मैं पैदल ही स्कूल जाता था। जब भी मैं उस रास्ते जाता तो वह छोटा लड़का मेरी ओर देख कर मुसकुराता था। उसकी चुप्पी में भी मुझे शब्द दिखते थे। कभी-कभी वे दोनों भाई कुछ रंगीन बोतलों के साथ खेलते हुए दिखते थे। मुझे वह बोतल और उनलोगों का खेलना बहुत अच्छा लगता था। मुझे लगता था कि उससे बात करूँ उससे दोस्ती करूँ फिर पता नहीं मैं आगे बढ़ जाता था और वे भी बात नहीं करते थे। स्कूल जाते हुए मैं उसके घर के बाहर बंधे घोड़े को जरूर देखता और वह भी मुझे मुड़कर देखता था।

एकबार मैंने अपने पापा से उस लड़के के बारे में पूछा तो पता चला कि उसके पापा पास के ही हाट में घोड़े पर लाद कर अनाज ले जाते थे और बेचते थे। उस लड़के की माँ बहुत बीमार रहती थी, उसके पापा के सारे पैसे उसकी माँ के ईलाज में खर्च हो जाते थे इसीलिए वे दोनों भाई स्कूल नहीं जाते थे। जिस रंगीन बोतलों से वो खेलते थे वह बोतल उसके माँ के दवा की खाली शीशी होती थी।

एकदिन मैं जब स्कूल से वापस लौट रहा था तो देखा कि दवा से भरी हुई वही रंगीन बोतलें और कुछ बिस्तर जंगल में सड़क के कीनारे फेंके हुए थे। मुझे लगा कि वह बोतल मैं उठा लूँ लेकिन पता नहीं क्यों मैं उसे उठा नहीं सका। पता नहीं मुझे क्यों घबराहट हो रही थी और मैं तेजी से दौड़ने लगा। मैं उसके घर के सामने आकर रुक गया, वहाँ मुझे कोई नहीं दिखा, वह घोड़ा भी वहाँ नहीं था। दरवाजे पर ताला लटका हुआ था। आसपास पूरा सन्नाटा था, कहीं कोई भी नहीं। मैं भागकर अपने घर पहुंचा और सबसे पहले माँ से उसके बारे में पूछा, पता चला कि उसकी माँ सबको छोड़ भगवान के पास चली गई है। फिर वह परिवार सबकुछ छोड़ उस कस्बे से कहीं दूर चले गए। मैं बहुत रोया, पता नहीं कब तक रोया। मैं आज भी कभी-कभी अपनी माँ से पूछता हूँ कि वो लोग कहाँ चले गए थे, जाने से पहले कोई पता बताया था क्या कि कहाँ जा रहे हैं।

कुछ कहानियाँ कभी पूरी नहीं होती। आज भी मैं उस अधूरे परिवार को जंगल के पतले पगडंडियों पर अपनी आँख से ओझल होने तक जाते हुए देखता हूँ, वो धुंध में गायब होते हुए दिख रहे हैं।  छोटा लड़का बीच में घोड़े पर बैठ हुआ है, एक तरफ उसका बड़ा भाई पैदल चल रहा है जबकि दूसरी तरफ उसके पापा कंधे पर झोला उठाए घोड़े का लगाम पकड़ कर सर झुकाए हुए किसी लंबे यात्रा पर कहीं चले जा रहे हैं।

Thursday, May 27, 2021

इतिहास से मिटा दिए गए नायकों के लिए

 

तस्वीर:- Dalkajhar Forest, March, 2018


आज मैं तुम्हारे लिए लिखना चाहता हूँ………….लिखता हूँ और उसे मिटा देता हूँ क्योंकि मैं जहाँ हूँ मेरे हाथ बंधे हुए हैं और मुझे यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है कि सब ठीक है.........इसीलिए मैं नहीं लिख सकता तुम्हारे लिए।

कुछ देर बाद मैं फिर लिखने लगता हूँ क्योंकि तुम्हारा कहना की सब बदल जाएगा एक दिन, उसपर यकीन है मुझे।

जहाँ पहले पतली पगडंडियाँ थी वहाँ आज अलकतरा की काली चौड़ी लकीरें हैं जिस पर लोग चल रहे हैं लेकिन वह उन चलने वालों के लिए नहीं है। यह बदलाव जितना ही आकर्षक है उतना ही अधूरा। पहाड़ों पर उगे हरे पेड़ों के बीच चहचहाते चिड़ियों तक ने उस बदलाव को देखा और चुपचाप उसे रास्ता दे दिया जिसने उससे वह पहाड़ और पेड़ भी छीन लिए। बदलाव के इस संघर्ष के बीच अब तो अपने मन की भी आवाजें सुनाई नहीं देती। तुम जिस बदलाव को देखते थे वह अब दिखाई नहीं देती क्योंकि उस बदलाव को लाने वाले खुद ही बदल गए थे। हम आज तक नहीं भूले उन पगडंडियों को, ना ही उन पहाड़ों को और ना ही उन चचहाते चिड़ियों को।  हमें बदलाव चाहिए लेकिन ऐसा बदलाव जहाँ आपसी सांनाजस्यता हो, जहाँ पगडंडी भी हो, अलकतरा की सड़के भी, चिड़िया भी, पहाड़ भी, तालाब भी और उद्योग-धंधे भी पर सभी पर समाज का नियंत्रण हो। जब लिखने बैठता हूँ तो सोचता हूँ कि वह उद्देश्य कितना पवित्र होगा जिसके लिए तुमने अपना सब-कुछ यहाँ तक कि अपने जान को भी दाँव पर लगा दिए थे। आज भी मैं जब इतिहास के अवशेषों से गुजरता हूँ तो मुझे तुम दिखते हो पर वो सब भी दिख जाता है जिसे तुम बदलना चाहते थे। सब बदल गए लेकिन वह नहीं जिसे तुम बदलना चाहते थे, मुझे पता नहीं लोग बना रहे थे या मिटा रहे थे। वर्तमान में जो कष्ट सह कर भी तुम्हारे सपनों को सच कर रहे हैं, हो सकता है कि उन्हें भविष्य के इतिहास में जगह नहीं मिले लेकिन वो जनमानस में हमेशा रहेंगे, जैसे कि तुम हो।

तुमने कहा था कि सभी बदलावों के बावजूद भी रातें ऐसी ही काली होती रहेंगी जिसके अंधेरे में सारे सपने गायब हो जाएंगे और जो सुबह में बच जाएगी उसे ही लड़ियों में पिरो कर बदलाव लाना है। ऐसे ही रातों से रोज गुजरता हूँ और सुबह में बचे हुए सपनों पर मुसकुराता हूँ।  क्या तुम वहाँ हो अभी भी जो उन लड़ियों को पिरोने में मदद कर सके? किसी लंबी सुरंग के गहरे अँधियारे के दूसरे छोर पर वह जो हल्की सी झिलमिल रोशनी है, वह तुम ही तो हो। आज भी जब मैं उस दुविधा के सुरंग से गुजरता हूँ तो अनजाने में सही, एक बार पलटकर जरूर देखता हूँ और मुझे तुम दिखते हो।


Tuesday, May 25, 2021

जुगाड़

 


जिस देश की अधिकांश जनसंख्या गरीबी में जीवन यापन कर रही हो उस देश में जुगाड़ का एक अलग ही महत्व है। रोजमर्रा की जरूरतों और मुश्किलों से जूझ रहा भारत भले ही अमेरिका न बना हो, लेकिन जुगाड़ के मामले में दुनिया में कभी कोई मुकाबला होता है तो निश्चित रूप से सभी पुरस्कार भारत के नाम पर ही होंगे। जुगाड़ के कुछ प्रचलित रूप हैं- फटे हुए कपड़ों का झोला बनाना, पोंछा बनाना, नाली के गैस से खाना बनाना (ऐसा मैंने TV पर किसी को बोलते सुन था), बादल का जुगाड़ करके फाइटर जेट को दुश्मन की राडार से बचाना (पता नहीं ऐसा कैसे कर लेते हैं) जूते के टूटे सोल को जबरदस्ती चिपका कर प्रयोग करना, कपड़ों के फटे हुए भाग पर Nike, Adidas आदि ब्रांडों के स्टीकर को सिल कर प्रयोग में लाना, बाइक के इंजन से पंप सेट बनाना इत्यादि। इसी कड़ी में एक और जुगाड़ है – झोला छाप डॉक्टर।

वर्षों से यह चर्चा का विषय रहा है कि झोलाछाप डॉक्टर समाज के लिए खतरा हैं इनके इलाज से कई बार मरीजों की जान पर बन आती है। इसका बड़ा कारण है कि बीमारी की समझ से ज्यादा झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है और बिना किसी जांच के आधार पर मरीज का इलाज किया जाता है, जिनकी वजह से कई बार केस खराब हो जाता हैइसी कारण से समय-समय पर इनके खिलाफ कार्यवाही भी होती है, इनके खिलाफ अभियान भी चलाया जाता है। इनकी क्लिनिक तक सील कर दी जाती है। आज इन सभी पर चर्चा नहीं करके इस विषय पर चर्चा करने का मन कर रहा है कि लोग इनसे इलाज क्यों करवाते हैं। इनकी जरूरत समाज में क्यों है। देश में झोला छाप डॉक्टर की आवश्यकता जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि हमारे देश में स्वास्थ्य व्ययस्था की उपलब्धता कैसी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात 1:1,000 को एक स्टैन्डर्ड के रूप में परिभाषित किया है ।  भारत ने 2018 में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस "गोल्डन फिनिशिंग लाइन 1:1,000” को पार कर लिया है।  लेकिन यह पार करना ही काफी नहीं है क्योंकि इसमें एमबीबीएस के साथ-साथ पारंपरिक चिकित्सा (जैसे-आयुर्वेद, होमियोपैथ, यूनानी आदि) भी शामिल हैं, इसके अलावे यह आंकड़ा भ्रामक इसलिए भी है क्योंकि देश के अधिकांश डॉक्टर शहरी क्षेत्रों में रहते हैं और प्राइवेट में प्रैक्टिस करते हैं, जो आम लोगों के पहुँच से बाहर है।  इसके अलावे देश के बहुत सारे जिले इस गोल्डन फिनिशिंग लाइन से बहुत नीचे हैं। डॉक्टर तो चिकित्सा व्यवस्था का एक अंग हैं ही, इसके अलावे  अस्पताल, प्राथमिक उपचार केंद्रों की संख्या कम होने से ईलाज आम जनता के पहुँच से बाहर हैं। फिर मंहगी दवाएं भी आम लोगों के लिए नहीं है। जहाँ तक प्रति 10,000 जनसंख्या के लिए अस्पताल में बिस्तर के उपलब्धता की बात है वहाँ विश्व में सिर्फ 12 देश हैं ऐसे हैं जो बिस्तर की उपलब्धता के मामले में भारत से भी बदतर हैं । भारत में 10,000 भारतीयों के लिए अस्पताल में सिर्फ 05 बेड हैं। मानव विकास रिपोर्ट-2020 से पता चला है कि 167 देशों में से भारत बिस्तर की उपलब्धता पर 155 वें स्थान पर है। भारत की तुलना में जनसंख्या अनुपात के लिए कम बिस्तरों वाले देश युगांडा, सेनेगल, अफगानिस्तान, बुर्किनाफासो, नेपाल और ग्वाटेमाला हैं । यहां तक कि बांग्लादेश प्रति 10,000 आबादी पर 8 बिस्तरों के साथ भारत की तुलना में बेहतर है।

 

देश के विभिन्न जिलों में अस्पताल होने के बावजूद लोगों के पहुँच से बाहर हैं क्योंकि अस्पताल में डॉक्टर नहीं होते हैं, दवाएं नहीं होती है, लोगों के पास किराये के पैसे नहीं होते कि वो अस्पताल तक पहुँच सकें, दवा खरीद सकें। बहुत से अस्पताल तो ऐसे हैं जहाँ सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी को झंडे फहराने का काम होता है और उसी दिन डॉक्टर या स्टाफ भी मौजूद रहते हैं या फिर उस दिन जिस दिन किसी मंत्री या बड़े अधिकारियों का दौरा होता है । मतलब अधिकांश अस्पताल सिर्फ कागज पर ही मौजूद हैं। जहाँ तक प्राइवेट अस्पताल की बात है उसका खबर पढ़कर ही मध्यमवर्ग के लोग भी घबराते हैं। जैसे- अस्पताल ने 20 घंटे के ईलाज के लिए 1,15,000/-, दो दिन के ईलाज के लिए 5 लाख रुपये, अस्पताल प्रशासन का शव देने से इनकार आदि खबरें हमारे अखबारों के वैसे हिस्से बन गए हैं जिसको लोग खुद अपने नजरों से बचकर पलट देते हैं। शहरों में तो बड़े दवा दुकानों और बड़े अस्पतालों के गेट से निकलती AC की ठंडी हवाओं के शरीर को स्पर्श करने मात्र से रोमांचित होने वाले ग़रीबों को उसमें अंदर जाने से उतना ही डर होता है जितना कि उनके घर में बचे-खुचे ख़ाली बर्तनों के छिन जाने से । शहरी डॉक्टरों का डिजाइनदार, कांच से बने हुए साफ-सुथरे और भव्य क्लीनिक गाँव के मरीजों को भयभीत करते हैं । वह गांव में रहकर बीमारी भोग लेंगे  लेकिन शहरी अस्पतालों के आतंकित कर देने वाली स्वच्छता, शांति और बड़े डॉक्टर के भव्य चेहरे उन्हें शहर जाने से रोकता है। ऐसे में उन्हें भी ऐसे ईलाज की जरूरत महसूस होती है जो ना कि उनके घर के पास उपलब्ध हो बल्कि उनके बजट में भी हो। जहाँ डॉक्टर नहीं पहुँच पाते वहीं  झोलाछाप डॉक्टरों की पहुंच आज भी दूर-दराज के गावों तक है। गांव के लोग इन पर काफी विश्वास भी करते हैं। ये 24X7X365 लोगों कि सेवा में  उपलब्ध रहते हैं। इनके व्यवहार अपनापन भरा और जनता में विश्वास पैदा करने वाला होता है। मरीज के बुलाने पर यह उनके घरों  तक पहुंच कर सेवा प्रदान करते हैं। इनके झोले में ईलाज के लिए कई तरह की दवाएं और इन्जेक्शन भी होते हैं जो कि काफी कम मूल्य पर लोगों के लिए उपलब्ध होता है।  ये लोग ईलाज के बदले बहुत ही मामूली रकम लेते हैं और कई बार मरीज के पास ईलाज के पैसे नहीं रहने पर ये मरीज के आग्रह पर उनसे गेहूं, चावल, आलू, दूध या मरीज के पास उपलब्ध कोई अन्य कृषि पैदावार भी ले लेते हैं। इसके अलावे इनके संपर्क शहर में अच्छे चिकित्सक से भी होते हैं। ये लोग आवश्यकता पड़ने पर मरीज का शहर में इलाज के लिए जाने में मदद भी करते हैं। कोरोना महामारी के समय इनका एक बहुत ही मानवीय रूप देखने को मिल है। जहाँ बड़े डॉक्टर मरीजों को दूर से देख कर भी ईलाज करने में हिचकिचाते रहे वहीं ये लोग मरीजों के घर जा कर उनको आक्सिजन लगाने में, इन्जेक्शन लगाने में, ब्लड प्रेशर/शुगर मापने में और दवा उपलब्ध कराने में मदद करते रहे। जहाँ देश की बड़ी आबादी दवा दुकानदार से ही पूछ कर दवा लेकर अपनी बीमारी दूर कर लेती है वहाँ इन झोला छाप डॉक्टरों का होना गरीबों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। वैसे, सभी चाहे गरीब हों या अमीर अच्छा ईलाज चाहते हैं। गरीब लोग मजबूरी से ही झोला छाप डॉक्टर के पास जाते हैं और कई बार नुकसान भी कराते हैं।

अर्थव्यवस्था में आपूर्ति और मांग के नियम, सबसे बुनियादी आर्थिक नियमों में से एक है और लगभग सभी आर्थिक सिद्धांतों में लागू भी होता है। व्यवहार में, लोगों द्वारा किसी वस्तु की मांग एवं आपूर्ति ना सिर्फ उस वस्तु का मूल्य निर्धारित करता है बल्कि उसकी उपलब्धता को भी सुनिश्चित करता है। जबतक सरकारें  सभी आम लोगों तक चिकित्सा व्ययस्था की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं कर पाएगी, समाज में झोला छाप डॉक्टर उस मांग की पूर्ति करते रहेंगे। सरकार द्वारा चिकित्सा व्यवस्था  की समुचित उपलब्धता तक ये झोला छाप डॉक्टर मोदी सकरार की दो योजनाओं- “प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना” और “जहाँ बीमार-वहीं उपचार” के मुख्य ध्वजवाहक बने रहेंगे।  

 

 

वीडियो साभार:- WhatsApp University

नोट-विडिओ देख कर भले ही हास्य की अनुभूति हो लेकिन झोला छाप डॉक्टर द्वारा कहे शब्द और उनका आत्मविश्वास एक कटु सत्य है, जिसके भरोसे अधिकांश गरीब जनता जीवन यापन करती है ।


Monday, May 24, 2021

बढ़ती खाई


 

हमारे शहरों में कई ऐसे जगहें हैं जहाँ सुबह होते ही सैकड़ों की संख्या में लोग पतली और टूटी-फूटी नालियों से भरी सड़कों से अपनी नयी-पुरानी साइकिलों से या फिर पैदल निकल पड़ते हैं। वे कारखानों में, दुकानों में, मॉल में या किसी बन रही इमारत में दिहाड़ी मजदूर होते हैं  कुछ तो प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड का भी काम करते हैं । इन लोगों की जिंदगी काफी मुश्किल भरी होती है । आज के जमाने में जितनी तेजी से महंगाई अपना पैर फैला रही है, दैनिक जरूरतें पूरी करना किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए जबर्दस्त हौसले का काम है और इन लोगों के लिए तो किसी जंग जीतने के बराबर है । इनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपने परिवार को दूरदराज के किसी कस्बे या गांव में छोड़ कर शहर में अकेले ही रहते हैं । इनके पिताओं को इंतजार होता है कि शहर से बेटा कुछ पैसे भेजे और वे अपने मोतियाबिंद का ऑपरेशन करा सकें, मानसून आने से पहले टूटे हुए घर की मरम्मत कर सकें । कुछ विधवा माँ भी होती है जिन्हे भोजन और इलाज की जरूरत होती है । कुछ उम्रदराज बहनें भी होती हैं जिनको अपने शादी का इंतजार होता है । गरीबी की मार झेलती पत्नियां भी  जो हमेशा इस उम्मीद में रहती हैं कि शायद वे बच्चों की पढ़ाई के लिए कुछ पैसे बचा सकें। कुल मिला-जुला कर हालत यह होती है कि अपनी मामूली कमाई में से ये लोग इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि परिवार के लोगों को ज्यादा से ज्यादा पैसे भेज सकें।

 

सालों-साल से इन गरीब मजदूर परिवारों का आदर्श वाक्य होता है कि ‘दाल-रोटी खाओ- प्रभु के गुण गाओ’ और इन्ही से इन्हे धैर्य भी मिलता है । लेकिन अब तो दाल भी लगभग सौ रुपए पार और आटा पचास रुपये प्रति किलो हो गयी है और कोरोना महामारी के कारण बंद हुए काम और आय के बंद होने से इन गरीबों को यह समझ में नहीं आ रहा कि इस बेरहम शहर में वे क्या खाएं और किसके गुण गाएं। शहर का गणित भी बहुत जटिल किस्म का था। शहर में कुछ धनाढ्य लोगों के लिए साप्ताहिक छुट्टी शानदार होती थीं (कोरोना बीतने के बाद फिर उसी तरह होती रहेगी) । सप्ताहांत में इस वर्ग के लोग अपनी छोटी-बड़ी कारों में झुण्ड के झुण्ड मस्ती करने निकलते हैं, मंहगे रेस्टोरेंट में खाना खाते हैं और फिर किसी मल्टीप्लेक्स सिनेमा हॉल में बैठकर पिक्चर देखने का लुत्फ उठाते हैं । इस सारी मौज-मस्ती में ये  लोग इतने खर्च कर देते हैं जो गरीब परिवारों के कई महीनों की आय से भी अधिक होता है । खैर देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह भी एक आवश्यक तत्व है।  यह देश ऐसे ही अनेक विरोधाभासों से भरा हुआ है ।

 

देश के सभी सरकारों और इस क्षेत्र में काम कर रही संस्थाओं को इस विषय पर और ज्यादा काम करने की जरूरत है (यहाँ भी विरोधाभास यह है कि इस विषय पर आजादी के बाद से ही काम हो रहा है) क्योंकि किसी भी समाज में बढ़ रही यह खाई समाज को और देश को अराजकता की ओर ही ले जाएगी। एक तरफ जहाँ देश की अधिकांश जनसंख्या खाने में सिर्फ चावल, रोटी, नामक और तेल खाकर गुजारा करते हैं और 70 के दशक का न्यूनतम कैलोरी का फार्मूला (जो ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में एक वयस्क के लिए क्रमशः 2,400 और 2,100 कैलोरी की न्यूनतम दैनिक आवश्यकता पर आधारित था) आज भी बेईमानी ही है। वहीं दूसरी ओर देश में अरबपतियों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। प्रख्यात अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने यह बताया था कि किस प्रकार भारत के अधिकांश अरबपतियों ने अपनी संपत्ति इन्फॉरमेशन टेक्नॉलॉजी अथवा सॉफ्टवेयर से नहीं बल्कि जमीन, प्राकृतिक संसाधनों और सरकार द्वारा मिलने वाले ठेकों और लाइसेंसों से अर्जित की है। दुर्भाग्यवश आज भी गरीबी-निवारण में सुस्ती और इस प्रकार के अरबपतियों (जो प्राकृतिक संसाधनों के लूट से अरबपति बन रहे हैं) की संख्या में तेज वृद्धि निर्बाध जारी है और यह अत्यंत चिंताजनक है। आने वाले समय में कोरोना महामारी और उससे होने वाले वैश्विक मंदी से यह असंतुलन और ज्यादा बढ़ेगा, यह एक बड़ी चुनौती है।

Sunday, June 15, 2014

AICEIA ANNUAL LECTURE SERIES ON PARTICIPATORY GOVERNANCE

Recording of the Inaugural Lecture in the AICEIA Annual Lecture Series (all three parts) on Participatory Governance delivered by Shri Manimohan Ramankutty at Nagpur on 25.01.2014:-
https://www.youtube.com/watch?v=WiiYrvViHuc

https://www.youtube.com/watch?v=9xja-4_nNaU

https://www.youtube.com/watch?v=WeAh87w0n54

Friday, September 20, 2013

"Gratitude is the attitude that takes you to your altitude."

On the behalf of AICEIA, Patna Circle and on my own extend to you , honorable, a very hearty vote of thanks for gracing the General Body Meeting yesterday.  I would like to thank Sh. J. K. Jha, Commissioner, Central Excise & S. Tax, Jamshedpur (Special Invitee), Sh. A. Satish, President, AICEIA (Chief Guest), Sh. Ajit Kumar KG, Secretary General, AICEIA, Sh. Samir Kumar Sinha, Working President, AICEIA,  Sh. Shailendra Kumar, Vice President (CZ), AICEIA, Sh. V. P. Singh, President, Superintendent’s Association and Sh. B. K. Mishra, Jt. Secretary, Jamshedpur, Superintendent’s Association for their presence and sharing the views with the members of AICEIA, Patna Circle (Bihar & Jharkhand).   Further, I take this opportunity to extend our most sincere thanks to all who have come from different destinations for participation, support & cooperation.

An event of this dimension cannot happen overnight. The wheels start rolling months in advance. It requires meticulous planning and execution and an eye for details. We have been fortunate enough to be backed by a team of very motivated and dedicated members, who know their job and are result oriented. I extend my sincere gratitude to all the members of Jamshedpur Unit for helping us out in this endeavor. I  thank every members of our Circle for the involvement they have shown and the willingness they have expressed to take on the completion of tasks beyond their comfort zones.
Finally, the wonderful members who have turned up in such overwhelming numbers. We thank you very much for your patience and cooperation. I would also like to thank the volunteers who have been running around doing a lot of things.

LONG LIVE UNITY, LONG LIVE AICEIA.


Regards,
Abhishek Kamal,
General Secretary,
AICEIA, Patna circle.

Thursday, November 10, 2011

QUOTATIONS hindizen


~ सबसे धनी वह नहीं है जिसके पास सब कुछ है, बल्कि वह है जिसकी आवश्यकताएं न्यूनतम हैं.
~ साहस भय की अनुपस्थिति नहीं है. यह तो इस निर्णय तक पहुँचने का बोध है कि कुछ है जो भय से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. – एम्ब्रोस रेडमून
~ जब मुझे भूख लगती है तो खा लेता हूँ और जब थक जाता हूँ तो लेट जाता हूँ. मूर्ख मुझपर हंस सकते हैं पर ज्ञानीजन मेरी बातों का अर्थ समझते हैं. – लिन-ची.
~ जिस आदमी के पास सिर्फ हथौड़ा होता है उसे अपने सामने आने वाली हर चीज़ कील ही दीखती है. – अब्राहम मासलो.
~ तीसरे दर्जे का दिमाग बहुमत के जैसी सोच रखने पर खुश होता है. दूसरे दर्जे का दिमाग अल्पमत के जैसी सोच रखने पर खुश होता है. और पहले दर्जे का दिमाग सिर्फ सोचने पर ही खुश हो जाता है. – ए ए मिलन
~ अपने विचारों पर ध्यान दो, वे शब्द बन जाते हैं. अपने शब्दों पर ध्यान दो, वे क्रिया बन जाते हैं. अपनी क्रियाओं पर ध्यान दो, वे आदत बन जाती हैं. अपनी आदतों पर ध्यान दो, वे तुम्हारा चरित्र बनाती हैं. अपने चरित्र पर ध्यान दो, वह तुम्हारी नियति का निर्माण करता है. – लाओ-त्जु
~ हम क्या सोचते हैं, क्या जानते हैं, और किसमें विश्वास करते हैं – अंततः ये बातें मायने नहीं रखतीं. हम क्या करते हैं वही महत्वपूर्ण है. – जॉन रस्किन
~ सही राह पर होने के बाद भी यदि आप वहां बैठे ही रहेंगे तो कोई गाड़ी आपको कुचलकर चली जायेगी. – विल रोजर्स
~ लोग अक्सर कहते हैं कि प्रेरक विचारों से कुछ नहीं होता. हाँ भाई, वैसे तो नहाने से भी कुछ नहीं होता, तभी तो हम इसे रोज़ करने की सलाह देते हैं! – ज़िग ज़िगलर
~ विवाह करने से पहले मेरे पास बच्चों को पालने के छः सिद्धांत थे. अब मेरे पास छः बच्चे हैं पर सिद्धांत एक भी नहीं. – जॉन विल्मोट
~ अपने शत्रुओं को सदैव क्षमा कर दो. वे और किसी बात से इससे ज्यादा नहीं चिढ़ते. – ऑस्कर वाइल्ड
~ मैं सैकड़ों ज्योतिषियों और तांत्रिकों के यहाँ गया और उन्होंने मुझे हजारों बातें बताईं. पर उनमें से एक भी मुझे यह नहीं बता सका कि मैं एक पुलिसवाला हूँ जो उन्हें गिरफ्तार करने आया है – न्यूयॉर्क पुलिसमैन
~ मेरा निराशावाद इतना सघन है कि मुझे निराशावादियों की मंशा पर भी संदेह होता है.
~ कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इसलिए आत्महत्या नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग क्या कहेंगे!
~ हम सभी रोज़ कुछ-न-कुछ सीखते हैं. और ज्यादातर हम यही सीखते हैं कि पिछले दिन हमने जो सीखा था वह गलत था. – बिल वौगेन
~ लंबा पत्र लिखने के लिए माफी चाहता हूँ पर इसे छोटा करने के लिए मेरे पास समय नहीं था. – ब्लेज़ पास्कल
~ किसी सूअर से कुश्ती मत करो. तुम दोनों गंदगी में लोटोगे पर इसमें मज़ा सिर्फ सूअर को ही आएगा. – केल यार्बोरो
~ चूहादौड़ में अगर आप जीत भी जायेंगे तो भी चूहा ही तो कहलायेंगे! – लिली टॉमलिन

Inspirational Story

एक बहुत धनी युवक रब्बाई के पास यह पूछने के लिए गया कि उसे अपने जीवन में क्या करना चाहिए. रब्बाई उसे कमरे की खिड़की तक ले गए और उससे पूछा:

“तुम्हें कांच के परे क्या दिख रहा है?”

“सड़क पर लोग आ-जा रहे हैं और एक बेचारा अँधा व्यक्ति भीख मांग रहा है”.

इसके बाद रब्बाई ने उसे एक बड़ा दर्पण दिखाया और पूछा:

“अब इस दर्पण में देखकर बताओ कि तुम क्या देखते हो”.

“इसमें मैं खुद को देख रहा हूँ”.

“ठीक है. दर्पण में तुम दूसरों को नहीं देख सकते. तुम जानते हो कि खिड़की में लगा कांच और यह दर्पण एक ही मूल पदार्थ से बने हैं.”

“तुम स्वयं की तुलना कांच के इन दोनों रूपों से करके देखो. जब यह साधारण है तो तुम्हें सभी दिखते हैं और उन्हें देखकर तुम्हारे भीतर करुणा जागती है. और जब इस कांच पर चांदी का लेप हो जाता है तो तुम केवल स्वयं को देखने लगते हो.”

“तुम्हारा जीवन भी तभी महत्वपूर्ण बनेगा जब तुम अपने आँखों पर लगी चांदी की परत को उतार दो. ऐसा करने के बाद ही तुम अपने लोगों को देख पाओगे और उनसे प्रेम कर सकोगे”.

यह यहूदी नीति-कथा पाउलो कोएलो के ब्लॉग से ली गयी है.

Saturday, May 29, 2010

HI

Dear Friends!

I m back after a long time and assure you that i will post a lot this season.

thanks.

Tuesday, May 20, 2008

North India's Biggest BIRD SCANTURY

Kusheshwar Asthan is a famous religious place, situated about 51 km from District headquarter of Darbhanga (BIHAR). A very ancient temple of Lord Shiva (which is known as Kusheshwar Baba) is present here. This place is famous for its festivals like Shivratri, Durga Puja, Chhath etc. which are celebrated with great enthusiasm.

The water logged fourteen villages of Kuseshwarasthan block covering an area of 7019 acres and 75 decimals, due to their greater ecological, faunal, floral, geomorphological and natural importance has already been declared as Kuseshwarasthan Bird Sanctuary under Wild Life Protection Act 1972 (as amended upto 1991). Some famous migratory birds which comes here are:-Dalmatian pelican (Pelicanus erisups), Bar-headed goose, White winged wood duck (Cairiva scutulata), Siberian Crane (Grus leuogranus), Indian Skimmer (Rynchops albicollis) etc.
Native Countries of Migratory Birds :Nepal, Tibet, Bhutan, Afghanistan, China, Pakistan, Mongolia & Siberia and others.

It is considered as the biggest bird scantury of North India and must visited place for all bird lovers and ecologists.
Boats are offered at a nominal cost to visit the water logged area and bird seeing.

Kusheshwar Asthan is well connected by Railway & Road from Darbhanga and Patna. Darbhanga and Hasanpur (Samastipur) are nearest railway station. All seasons (except rainy) are right time to visit Kusheshwar Asthan.

So come and visit this amazing place.

Thank you.