ABHISHEK KAMAL

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Thursday, May 27, 2021

इतिहास से मिटा दिए गए नायकों के लिए

 

तस्वीर:- Dalkajhar Forest, March, 2018


आज मैं तुम्हारे लिए लिखना चाहता हूँ………….लिखता हूँ और उसे मिटा देता हूँ क्योंकि मैं जहाँ हूँ मेरे हाथ बंधे हुए हैं और मुझे यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है कि सब ठीक है.........इसीलिए मैं नहीं लिख सकता तुम्हारे लिए।

कुछ देर बाद मैं फिर लिखने लगता हूँ क्योंकि तुम्हारा कहना की सब बदल जाएगा एक दिन, उसपर यकीन है मुझे।

जहाँ पहले पतली पगडंडियाँ थी वहाँ आज अलकतरा की काली चौड़ी लकीरें हैं जिस पर लोग चल रहे हैं लेकिन वह उन चलने वालों के लिए नहीं है। यह बदलाव जितना ही आकर्षक है उतना ही अधूरा। पहाड़ों पर उगे हरे पेड़ों के बीच चहचहाते चिड़ियों तक ने उस बदलाव को देखा और चुपचाप उसे रास्ता दे दिया जिसने उससे वह पहाड़ और पेड़ भी छीन लिए। बदलाव के इस संघर्ष के बीच अब तो अपने मन की भी आवाजें सुनाई नहीं देती। तुम जिस बदलाव को देखते थे वह अब दिखाई नहीं देती क्योंकि उस बदलाव को लाने वाले खुद ही बदल गए थे। हम आज तक नहीं भूले उन पगडंडियों को, ना ही उन पहाड़ों को और ना ही उन चचहाते चिड़ियों को।  हमें बदलाव चाहिए लेकिन ऐसा बदलाव जहाँ आपसी सांनाजस्यता हो, जहाँ पगडंडी भी हो, अलकतरा की सड़के भी, चिड़िया भी, पहाड़ भी, तालाब भी और उद्योग-धंधे भी पर सभी पर समाज का नियंत्रण हो। जब लिखने बैठता हूँ तो सोचता हूँ कि वह उद्देश्य कितना पवित्र होगा जिसके लिए तुमने अपना सब-कुछ यहाँ तक कि अपने जान को भी दाँव पर लगा दिए थे। आज भी मैं जब इतिहास के अवशेषों से गुजरता हूँ तो मुझे तुम दिखते हो पर वो सब भी दिख जाता है जिसे तुम बदलना चाहते थे। सब बदल गए लेकिन वह नहीं जिसे तुम बदलना चाहते थे, मुझे पता नहीं लोग बना रहे थे या मिटा रहे थे। वर्तमान में जो कष्ट सह कर भी तुम्हारे सपनों को सच कर रहे हैं, हो सकता है कि उन्हें भविष्य के इतिहास में जगह नहीं मिले लेकिन वो जनमानस में हमेशा रहेंगे, जैसे कि तुम हो।

तुमने कहा था कि सभी बदलावों के बावजूद भी रातें ऐसी ही काली होती रहेंगी जिसके अंधेरे में सारे सपने गायब हो जाएंगे और जो सुबह में बच जाएगी उसे ही लड़ियों में पिरो कर बदलाव लाना है। ऐसे ही रातों से रोज गुजरता हूँ और सुबह में बचे हुए सपनों पर मुसकुराता हूँ।  क्या तुम वहाँ हो अभी भी जो उन लड़ियों को पिरोने में मदद कर सके? किसी लंबी सुरंग के गहरे अँधियारे के दूसरे छोर पर वह जो हल्की सी झिलमिल रोशनी है, वह तुम ही तो हो। आज भी जब मैं उस दुविधा के सुरंग से गुजरता हूँ तो अनजाने में सही, एक बार पलटकर जरूर देखता हूँ और मुझे तुम दिखते हो।


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