किसी का होना ही उसके होने का भाव उत्पन्न करे यह जरूरी नहीं, कभी-कभी उसका नहीं होना भी उसके होने का ज्यादा एहसास कराती है। कभी-कभी यादों के साथ चुपचाप जीना अच्छा लगता है फिर लगता है कि उन यादों को सबके सामने रखना ही चाहिए जिससे वो आपका पीछा छोड़ सके और आपका वो अनदेखी तस्वीरें दिखना बंद हो जाए।
बात उन दिनों की है जब मैं चौथी कक्षा में
पढ़ता था। मैं पहाड़ के तलहटी में जंगलों के बीच बसे एक छोटे से कस्बे में रहता था। जंगल के बीच से एक सड़क जाती थी और सड़क के दोनों ओर लकड़ी के घर बने होते थे।
मेरे घर के पास ही एक पहाड़ी नदी के किनारे एक और घर था......... हाँ, यही उस छोटे
लड़के का घर था। उस घर में उसके साथ उसके मम्मी-पापा और बड़ा भाई रहते थे। उस छोटे
लड़के कि उम्र मेरी ही उम्र के बराबर था। और हाँ उसके घर में एक और सदस्य था- एक
प्यार सा घोड़ा। उसका घर मेरे स्कूल के रास्ते में पड़ता था। मैं पैदल ही स्कूल जाता था। जब भी मैं उस रास्ते
जाता तो वह छोटा लड़का मेरी ओर देख कर मुसकुराता था। उसकी चुप्पी में भी मुझे शब्द
दिखते थे। कभी-कभी वे दोनों भाई कुछ रंगीन बोतलों के साथ खेलते हुए दिखते थे। मुझे
वह बोतल और उनलोगों का खेलना बहुत अच्छा लगता था। मुझे लगता था कि उससे बात करूँ उससे
दोस्ती करूँ फिर पता नहीं मैं आगे बढ़ जाता था और वे भी बात नहीं करते थे। स्कूल
जाते हुए मैं उसके घर के बाहर बंधे घोड़े को जरूर देखता और वह भी मुझे मुड़कर देखता
था।
एकबार मैंने अपने पापा से उस लड़के के बारे
में पूछा तो पता चला कि उसके पापा पास के ही हाट में घोड़े पर लाद कर अनाज ले जाते
थे और बेचते थे। उस लड़के की माँ बहुत बीमार रहती थी, उसके पापा के सारे पैसे उसकी माँ
के ईलाज में खर्च हो जाते थे इसीलिए वे दोनों भाई स्कूल नहीं जाते थे। जिस रंगीन बोतलों
से वो खेलते थे वह बोतल उसके माँ के दवा की खाली शीशी होती थी।
एकदिन मैं जब स्कूल से वापस लौट रहा था तो
देखा कि दवा से भरी हुई वही रंगीन बोतलें और कुछ बिस्तर जंगल में सड़क के कीनारे
फेंके हुए थे। मुझे लगा कि वह बोतल मैं उठा लूँ लेकिन पता नहीं क्यों मैं उसे उठा
नहीं सका। पता नहीं मुझे क्यों घबराहट हो रही थी और मैं तेजी से दौड़ने लगा। मैं
उसके घर के सामने आकर रुक गया, वहाँ मुझे कोई नहीं दिखा, वह घोड़ा भी वहाँ नहीं
था। दरवाजे पर ताला लटका हुआ था। आसपास पूरा सन्नाटा था, कहीं कोई भी नहीं। मैं
भागकर अपने घर पहुंचा और सबसे पहले माँ से उसके बारे में पूछा, पता चला कि उसकी माँ
सबको छोड़ भगवान के पास चली गई है। फिर वह परिवार सबकुछ छोड़ उस कस्बे से कहीं दूर चले
गए। मैं बहुत रोया, पता नहीं कब तक रोया। मैं आज भी कभी-कभी अपनी माँ से पूछता हूँ
कि वो लोग कहाँ चले गए थे, जाने से पहले कोई पता बताया था क्या कि कहाँ जा रहे
हैं।
कुछ कहानियाँ कभी पूरी नहीं होती। आज भी मैं
उस अधूरे परिवार को जंगल के पतले पगडंडियों पर अपनी आँख से ओझल होने तक जाते हुए
देखता हूँ, वो धुंध में गायब होते हुए दिख रहे हैं। छोटा लड़का बीच में घोड़े पर बैठ हुआ है, एक तरफ उसका
बड़ा भाई पैदल चल रहा है जबकि दूसरी तरफ उसके पापा कंधे पर झोला उठाए घोड़े का लगाम पकड़
कर सर झुकाए हुए किसी लंबे यात्रा पर कहीं चले जा रहे हैं।
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